भारत ने अब पाकिस्तान को सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक मंचों पर भी घेरने का पूरा खाका तैयार कर लिया है। कूटनीतिक बयानबाज़ी से आगे बढ़ते हुए भारत सरकार ने पाकिस्तान को मिलने वाली अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मदद पर रोक लगाने की पहल शुरू कर दी है। उद्देश्य साफ है — इस्लामाबाद को पाई-पाई के लिए मोहताज कर देना।
सूत्रों की मानें तो भारत अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक जैसी बहुपक्षीय वित्तीय एजेंसियों से पाकिस्तान को दिए जा रहे कर्ज और राहत पैकेज की समीक्षा की मांग करेगा। साथ ही, भारत ने वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) से पाकिस्तान को दोबारा ‘ग्रे लिस्ट’ में डालने की अपील करने का मन बना लिया है।
पाकिस्तान ने पिछले साल IMF से 7 बिलियन डॉलर का बेलआउट पैकेज हासिल किया था और मार्च 2025 में उसे 1.3 बिलियन डॉलर का जलवायु ऋण भी मिला। वहीं, जनवरी में विश्व बैंक ने उसे 20 अरब डॉलर का राहत पैकेज भी मंजूर किया। लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल अगर आतंकी गतिविधियों में हो रहा हो, तो यह वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
भारत इसी सवाल को लेकर 9 मई को होने वाली IMF की बोर्ड मीटिंग में अपनी आपत्तियाँ रख सकता है। जानकारों का कहना है कि IMF को “22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले” को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान को बिना शर्त मदद देने की नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आर्थिक सहायता से अनजाने में भी आतंकवाद को समर्थन न मिले।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के बैसरन घाटी (पहलगाम) में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत और दर्जनों के घायल होने के बाद भारत की प्रतिक्रिया बेहद सख्त रही है। लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े ‘टीआरएफ’ ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी। इसके बाद भारत ने एक के बाद एक कड़े कदम उठाए — सिंधु जल संधि को निलंबित किया, अटारी इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट बंद कर दिया और पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीज़ा सेवाएं तत्काल प्रभाव से रोक दी गईं।
ने और भारतीय विमानों के लिए एयरस्पेस बंद करने की धमकी दी है। साथ ही भारतीय नागरिकों के वीज़ा भी रद्द किए गए हैं। लेकिन जानकारों की मानें तो भारत की वैश्विक कूटनीतिक पहुंच और आर्थिक ताकत के आगे यह कदम ऊंट के मुँह में ज़ीरा हैं।
भारत अब FATF की आगामी बैठक में यह दबाव बनाएगा कि पाकिस्तान को दोबारा ग्रे लिस्ट में डाला जाए ताकि उस पर वैश्विक आर्थिक दबाव बढ़े। साथ ही, वह उन संस्थानों से संपर्क में है जो पाकिस्तान की परियोजनाओं को फंड करते हैं — ताकि उन्हें यह दिखाया जा सके कि यह फंडिंग अंततः क्षेत्रीय अस्थिरता को जन्म दे सकती है।
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