केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने वित्त वर्ष 2024-25 और असेसमेंट ईयर 2025-26 के लिए आयकर रिटर्न फॉर्म ITR-1 और ITR-4 को अधिसूचित कर दिया है। हर साल की तरह इस बार भी तकनीकी भाषा और सेक्शन की उलझनें तो बनी रहेंगी, लेकिन सरकार ने टैक्सपेयर्स की सुविधा के लिहाज़ से कुछ बेहद अहम बदलाव भी किए हैं—खासकर उन लोगों के लिए जो शेयर बाजार या म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं।
सबसे बड़ी खबर यह है कि अब सेक्शन 112ए के तहत 1.25 लाख रुपये तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) को रिपोर्ट करते हुए करदाता आईटीआर-1 यानी ‘सहज’ फॉर्म का इस्तेमाल कर सकते हैं। पहले की व्यवस्था में ITR-1 के ज़रिए कैपिटल गेन दिखाने की अनुमति नहीं थी, जिससे छोटे निवेशकों को ज़्यादा जटिल फॉर्म भरने पड़ते थे। यह कदम खास तौर से उन मध्यमवर्गीय करदाताओं के लिए राहत भरा है, जिन्होंने सालभर में कुछ शेयर या इक्विटी म्यूचुअल फंड बेचे और मुनाफा बहुत बड़ा नहीं हुआ।
लेकिन नियम सरल हुए हैं, तो सीमाएं भी तय की गई हैं। यह सुविधा केवल उन्हीं करदाताओं को मिलेगी जिनके पास न तो कोई कैपिटल गेन लॉस है जिसे कैरी फॉरवर्ड या सेट ऑफ करना हो, और न ही उन्होंने घर या अन्य संपत्ति बेची है जिससे शॉर्ट टर्म गेन हुआ हो। सीधा मतलब ये कि यदि आपने म्यूचुअल फंड में थोड़ा निवेश किया और मुनाफा सीमित है, तो आपके लिए ‘सहज’ सच में सहज हो गया है।
आईटीआर-4 भरने वालों के लिए भी कई अहम परिवर्तन किए गए हैं। अगर आपका बिजनेस डिजिटल मोड में 95% से अधिक लेन-देन करता है, तो अब सेक्शन 44एडी के तहत आपकी टर्नओवर सीमा 2 करोड़ से बढ़कर 3 करोड़ रुपये हो गई है। इसी तरह, प्रोफेशनल्स के लिए सेक्शन 44एडीए में यह सीमा 75 लाख रुपये तक बढ़ा दी गई है, बशर्ते डिजिटल रसीदों का अनुपात तय स्तर से अधिक हो।
फॉर्म भरने की प्रक्रिया भी अब और व्यवस्थित हुई है। 80सी से लेकर 80यू तक की कटौतियों के लिए ई-फाइलिंग पोर्टल में ड्रॉपडाउन मेन्यू जोड़ा गया है, जिससे गलत कोड चुनने का झंझट घटेगा। साथ ही, धारा 89ए के तहत विदेश में रखे गए सेवानिवृत्ति खातों से आय पर अब बेहतर रिलीफ ट्रैकिंग सुविधा दी गई है।
एक और अहम अपडेट—अब भारत में स्थित सभी सक्रिय बैंक खातों की जानकारी अनिवार्य रूप से ITR-1 और ITR-4 फॉर्म में देनी होगी। निष्क्रिय खातों को छोड़कर हर अकाउंट का ब्योरा देना अब जरूरी हो गया है, जो वित्तीय पारदर्शिता की दिशा में एक और कदम है।
कुल मिलाकर, टैक्स सिस्टम की यह नई काया क्लांत नहीं, बल्कि स्मार्ट और सरल दिख रही है। यह बदलाव न सिर्फ टेक्नोलॉजी को अपनाने वाले टैक्सपेयर्स के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि उन आम निवेशकों के लिए भी राहत भरे हैं जो जटिलताओं से बचते हुए टैक्स भरना चाहते हैं।
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