अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को बुधवार (21 मई) को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई, लेकिन अदालत ने उनके खिलाफ चल रही जांच पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया। यह मामला प्रोफेसर के ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ पर किए गए एक सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा है, जिसे सशस्त्र बलों और महिला सैन्य अधिकारियों के प्रति अपमानजनक माना गया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि प्रोफेसर के बयान “डॉग व्हिस्लिंग” (छिपा हुआ उत्तेजक संकेत) की तरह हैं और उन्होंने इसे “सस्ती लोकप्रियता पाने का प्रयास” बताया। हालांकि कोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत देते हुए कहा कि मामले की जांच पूरी गंभीरता से जारी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया कि वे 24 घंटे के भीतर एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन करें, जिसमें वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी शामिल हों, लेकिन ये अधिकारी हरियाणा या दिल्ली से न हों और कम से कम एक महिला अधिकारी की मौजूदगी अनिवार्य हो।
गौरतलब है कि 18 मई को अली खान महमूदाबाद को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था और उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया था। उनकी गिरफ्तारी उस फेसबुक पोस्ट के चलते हुई थी, जिसमें उन्होंने ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ पर टिप्पणी की थी, जिसे कई लोगों ने भारतीय सेना और विशेष रूप से महिला अधिकारियों का अपमान बताया।
महिला सैन्य अधिकारियों कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की प्रेस ब्रीफिंग का हवाला देते हुए प्रोफेसर ने लिखा था कि केवल दृश्य प्रस्तुत करना (optics) काफी नहीं, जमीनी सच्चाई में बदलाव जरूरी है। उनके इस बयान को लेकर हरियाणा राज्य महिला आयोग ने सख्त आपत्ति जताई थी और महिलाओं का अपमान करने का आरोप लगाया था।
हालांकि प्रोफेसर महमूदाबाद ने सोशल मीडिया पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनके बयानों में कोई भी महिला-विरोधी या देशविरोधी भावना नहीं थी और उन्होंने केवल युद्ध की त्रासदी तथा मानव जीवन के नुकसान पर चिंता व्यक्त की थी। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अस्थायी राहत दी है, लेकिन जांच जारी रहने से यह मामला अभी भी पूरी तरह से शांत नहीं हुआ है। यह मामला एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा के को लेकर सार्वजनिक बहस को हवा दे रहा है।
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