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कोलकाता गैंगरेप पर दिलीप घोष का तीखा सवाल,”यूनियन का चुनाव नहीं, फिर कॉलेज में दफ्तर क्यों?”

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पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित कोलकाता गैंगरेप केस ने राज्य की राजनीति में उबाल ला दिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद दिलीप घोष ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पर सीधा निशाना साधा है। घोष ने सवाल किया, “जब यूनियन का चुनाव ही नहीं होता, तो कॉलेज में यूनियन रूम क्यों खुले हैं? वहां तो जैसे अपराध करने की छूट मिल गई हो।”

घटना के बाद कलकत्ता हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि जब तक छात्रसंघ चुनाव नहीं हो जाते, सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के यूनियन रूम्स बंद रखे जाएं। इस आदेश पर टिप्पणी करते हुए दिलीप घोष ने कहा, “हर यूनिवर्सिटी और कॉलेज में यूनियन रूम की आड़ में पार्टी ऑफिस चल रहा है। टीएमसी ने इन जगहों को अपना अड्डा बना दिया है। अगर यूनियन नहीं है, चुनाव नहीं होता, तो ये ऑफिस क्यों हैं? इन्हें तुरंत सील करना चाहिए। जब तक ये बने रहेंगे, इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी।”

टीएमसी विधायक सावित्री मित्रा के उस बयान पर कि ‘इस्लाम हमारा पसंदीदा धर्म है’ घोष ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि,”नेताओं को अपने बयान देने से पहले सोचना चाहिए कि वे किस समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। धर्म को राजनीति और वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करना निंदनीय है।”

वहीं, हाल ही में सामने आए राजनीतिक नारेबाजी पर भी उन्होंने प्रतिक्रिया दी। शमिक सुकांत्र के “जय मांकाली” नारे को लेकर उन्होंने कहा कि भाजपा शुरू से ही बंगाली संस्कृति और परंपराओं की रक्षा में लगी है।”हम जय मांकाली, जय श्रीराम जैसे नारों में विश्वास करते हैं। ये हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं और इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।”

जब दिलीप घोष से राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष के रूप में एक साल पूरा होने पर उनकी उपलब्धियों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, “लोगों को तो ये भी याद नहीं कि वो नेता प्रतिपक्ष हैं, उपलब्धि की बात करना तो बहुत दूर की बात है।” उन्होंने राहुल गांधी को लेकर कहा कि, “उल्टा-सीधा बोलने के अलावा उन्होंने कुछ नहीं किया।”

दिलीप घोष के बयानों ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर छात्र राजनीति, धार्मिक बयानबाजी और विपक्ष की भूमिका को लेकर चर्चा छेड़ दी है। कोलकाता गैंगरेप मामले ने जहां शैक्षणिक परिसरों की सुरक्षा और राजनीतिक हस्तक्षेप पर सवाल खड़े किए हैं, वहीं नेताओं के तीखे बयानों ने राजनीतिक तापमान और बढ़ा दिया है।

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