मोक्ष की नगरी काशी, जहां मृत्यु भी उत्सव मानी जाती है, वहां एक ऐसा रहस्यमय स्थल है जिसे पिशाच मोचन कुंड कहा जाता है। यह कोई साधारण जलकुंड नहीं, बल्कि आत्माओं के उद्धार का केंद्र है। कहा जाता है कि जो आत्माएं अकाल मृत्यु का शिकार होती हैं या जो अधूरी इच्छाओं के साथ इस संसार से जाती हैं, वे भटकती रहती हैं। लेकिन काशी में बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल की छाया में स्थित इस कुंड में उन आत्माओं को शांति और मुक्ति मिलती है।
गरुड़ पुराण के काशीखंड में इसका विशेष उल्लेख है। कुंड के समीप एक प्राचीन पीपल का वृक्ष है, जिसके नीचे आत्माओं का प्रतीकात्मक वास माना जाता है। वहां एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान ‘त्रिपिंडी श्राद्ध’ के माध्यम से आत्माओं को शांति प्रदान की जाती है। यह भारत का शायद एकमात्र स्थान है, जहां भूत-प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से पीड़ित आत्माओं के उद्धार के लिए विशेष पूजा होती है। मान्यता है कि यहां आत्माओं का उधार भी चुकाया जाता है — लोग पीपल पर सिक्के चढ़ाकर अपने पूर्वजों की अधूरी इच्छाओं को पूर्ण करने का संकल्प लेते हैं।
काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य और वैदिक विद्वान पंडित रत्नेश त्रिपाठी बताते हैं कि त्रिपिंडी श्राद्ध में पूर्वजों की तीन पीढ़ियों के लिए पिंडदान किया जाता है। इस कर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा की जाती है और आत्मा की शांति के लिए विशेष मंत्रों का उच्चारण होता है। ऐसा माना जाता है कि असंतुष्ट आत्माएं अपने वंशजों के जीवन में विघ्न डालती हैं, और जब उनका पिंडदान विधिपूर्वक कर दिया जाए, तो वे संतुष्ट होकर मोक्ष की ओर प्रस्थान करती हैं।
पिशाच मोचन कुंड का नाम सुनते ही कुछ लोगों को भय उत्पन्न हो सकता है, लेकिन इसके पीछे एक गहरी कथा है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि एक व्यक्ति, जिसका नाम ‘पिशाच’ था, उसने अपने जीवन में कई पाप किए। परंतु अंत में वह इसी स्थान पर आया, पश्चाताप किया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। तभी से यह कुंड ‘पिशाच मोचन’ कहलाने लगा — वह स्थान जहां सबसे अधम और भटकती आत्मा को भी शांति मिल जाती है।
काशी के वरिष्ठ पुजारी ज्ञानेश्वर पांडे बताते हैं कि इस कुंड को ‘काशी का विमल तीर्थ’ भी कहा जाता है। इसकी महिमा न केवल गरुड़ पुराण बल्कि स्कंद पुराण और अन्य कई शास्त्रों में भी वर्णित है। विशेषकर पितृपक्ष के समय यहां देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं और अपने पितरों के उद्धार के लिए पूजा और तर्पण करते हैं। यहां आकर लोग न सिर्फ अपने पूर्वजों को स्मरण करते हैं, बल्कि आत्मा के उस सूक्ष्म संसार से भी जुड़ जाते हैं, जो आमतौर पर हमारी आंखों से ओझल होता है।
काशी की आत्मा सिर्फ उसकी गलियों, घाटों या मंदिरों में नहीं बसती — वह इन स्थलों की दिव्यता में समाई हुई है, जो मृत्यु को भी मोक्ष बना देते हैं। पिशाच मोचन कुंड, इस शहर की उस चेतना का प्रतीक है, जहां आत्माएं घर लौटती हैं… और अधूरे रिश्ते, अधूरी सांसें पूर्णता पाती हैं।
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