गुजरात के नवसारी जिले के अमलसाड़ गांव का चीकू अब देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुका है। हाल ही में अमलसाड़ चीकू को प्रतिष्ठित जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिला है, जिसने इसे विशिष्टता की औपचारिक मान्यता दे दी है। यह टैग न केवल इस फल की खासियत को प्रमाणित करता है, बल्कि स्थानीय किसानों के लिए भी समृद्धि के नए रास्ते खोलता है।
तो आखिर अमलसाड़ चीकू में ऐसी क्या बात है?
यह चीकू अपने असाधारण स्वाद, चिकनी बनावट और लंबी शेल्फ लाइफ के लिए जाना जाता है। बाकी सामान्य चीकुओं की तुलना में अमलसाड़ चीकू की मिठास ज़्यादा गहरी और बनावट कहीं अधिक मुलायम होती है। इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो न केवल पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बेहतर बनाते हैं। इसके नियमित सेवन से चेहरे की चमक बढ़ती है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंस एंड रिसर्च में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, चीकू में विटामिन ए, बी, सी, ई के साथ-साथ कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज और पोटैशियम जैसे तत्व भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होते हैं। ये पोषक तत्व हड्डियों को मजबूत करने, फेफड़ों की सेहत सुधारने और आंखों की रोशनी को बनाए रखने में मददगार हैं।
अमलसाड़ चीकू का उत्पादन मुख्य रूप से नवसारी जिले के गणदेवी तालुका के 51 गांवों, जलालपुर तालुका के 6 गांवों और नवसारी तालुका के 30 गांवों में होता है। इन क्षेत्रों का कुल उत्पादन में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान है। जीआई टैग मिलने के बाद अब स्थानीय किसानों को उम्मीद है कि उनका फल वैश्विक बाजारों तक पहुंचेगा और उन्हें उनके उत्पाद का सही मूल्य मिलेगा।
जीआई टैग किसी भी उत्पाद के विशिष्ट भौगोलिक मूल और गुणवत्तापरक विशेषताओं को प्रमाणित करता है। जैसे बनारसी साड़ी, दार्जिलिंग चाय और गया का सिलाव खाजा को यह सम्मान मिल चुका है, वैसे ही अब अमलसाड़ चीकू भी इस गौरवशाली सूची में शामिल हो गया है।
अमलसाड़ चीकू का यह सफर न सिर्फ स्थानीय किसानों की मेहनत का सम्मान है, बल्कि भारत की विविध कृषि विरासत का भी एक शानदार उदाहरण बन गया है। अब जब भी दुनिया में कहीं अमलसाड़ चीकू का जिक्र होगा, तो उसके साथ गुजरात की मिठास और मेहनत की महक भी महसूस की जाएगी।
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