मुंबई में बहु-करोड़ रुपये के मीठी नदी डीसिल्टिंग घोटाले में आरोपी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के अधिकारी प्रशांत रमुगड़े को झटका लगा है। मुंबई सत्र न्यायालय ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अधिकारी की जिम्मेदारी साइट गतिविधियों की निगरानी और डीसिल्टिंग की प्रगति की जांच करना थी, जो उन्होंने नहीं निभाई। अदालत ने माना कि वह और अन्य आरोपी मिलकर साजिश में शामिल थे।
न्यायाधीश एन.जी. शुक्ला ने अपने आदेश में लिखा, “इस परियोजना से जुड़े अन्य अधिकारियों की तुलना में रमुगड़े की जिम्मेदारी अधिक थी। वह 2014 से इस परियोजना से जुड़ा है, पहले सब-इंजीनियर के तौर पर और फिर SWD (स्टॉर्म वॉटर ड्रेन) विभाग में असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में।”
रमुगड़े ने कोर्ट में दलील दी थी कि 2019 में उन्हें मीठी नदी डीसिल्टिंग परियोजना का अधिकृत अधिकारी (Designated Officer) नियुक्त किया गया, लेकिन उनके पास न तो टेंडर की शर्तें तय करने का अधिकार था, न ही टेंडर आमंत्रित करने या मंजूर करने का। उन्होंने यह भी कहा कि ठेकेदारों और डंपिंग साइट मालिकों के बीच हुए एमओयू की जांच करना उनका दायित्व नहीं था।
सरकारी वकील चैत्राली पंशिकर ने कोर्ट में इसका विरोध करते हुए बताया कि रमुगड़े 2012 से ही इस परियोजना से जुड़े थे, और सितंबर 2019 में अधिकृत अधिकारी बनने के बाद ड्राफ्ट टेंडर तैयार करने, उन्हें जारी और मंजूर करने की प्रक्रिया का नेतृत्व कर रहे थे।
प्रोसीक्यूशन ने आरोप लगाया कि डंपिंग साइट्स के जिन एमओयू को ठेकेदारों ने जमा किया, वे फर्जी थे और फर्जी हस्ताक्षरों से बने थे। रमुगड़े ने न तो कभी डंपिंग साइट्स का दौरा किया और न ही ठेकेदारों द्वारा अपलोड की गई ट्रांसपोर्ट लोरियों की तस्वीरों की जांच की, इसके बावजूद उन्होंने बिल पास कर दिए।
जांच में सामने आया कि रमुगड़े की मित्र सारिका कामदार, को-आरोपी केतन कदम के मित्र सचिन मायकर और किरण राजपुरोहित नामक व्यक्ति ने मिलकर M/s Groupo Solutions नामक कंपनी बनाई, जिसे ठेकेदारों से ₹41.94 लाख रुपये प्राप्त हुए। कामदार ने जांच अधिकारी को दिए अपने बयान में कहा कि रमुगड़े के कहने पर ही उन्होंने कंपनी की भागीदार बनने की सहमति दी। यह तथ्य रमुगड़े की साजिश में गहरी भागीदारी को दर्शाता है, अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में कहा।
कोर्ट ने यह भी बताया कि रमुगड़े दिल्ली और केरल की उस टीम का हिस्सा थे, जो मशीनों की जांच के लिए गई थी। इस यात्रा का खर्च M/s Virgo Specialties के केतन कदम ने उठाया, जिससे स्पष्ट है कि अधिकारी और ठेकेदार आपस में मिले हुए थे।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि रमुगड़े ने सिल्ट और कचरा उठाने की दरें बढ़ाने का प्रस्ताव भी बिना आधार के रखा, जिससे ठेकेदारों को मशीनों के उपयोग के लिए विवश किया गया। यह दर्शाता है कि अनुमानित माप और बिलिंग अधिकारी और ठेकेदारों की मिलीभगत से की गई।
न्यायाधीश शुक्ला ने अपने आदेश में कहा, “यह स्पष्ट है कि अधिकारी की आरोपी केतन कदम से गहरी जान-पहचान थी और उनके मित्रों के साथ कंपनी बनाई गई थी। सभी मिलकर नगर निगम को वित्तीय हानि पहुंचाने की साजिश में शामिल थे।” कोर्ट ने गंभीर आरोपों और साजिश में गहरी भूमिका को देखते हुए प्रशांत रमुगड़े की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।
यह मामला मीठी नदी की सफाई और सिल्ट हटाने के नाम पर फर्जी बिलिंग और करोड़ों रुपये के गबन से जुड़ा हुआ है। BMC की छवि पर पहले से उठते सवालों के बीच, यह घोटाला एक बार फिर मुंबई में सरकारी निगरानी तंत्र की कमजोरियों को उजागर करता है।
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