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बांग्लादेश: मुहम्मद यूनुस के इस्तीफे की अटकलें तेज

BBC की रिपोर्ट में खुलासा

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के इस्तीफे की अटकलों ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। BBC बांग्ला की गुरुवार (22 मई) देर रात की रिपोर्ट के अनुसार, यूनुस राजनीतिक दलों के बीच जारी गंभीर गतिरोध और सहयोग की कमी के कारण अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ महसूस कर रहे हैं और इस्तीफे पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।

यह जानकारी नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) के नेता नाहिद इस्लाम ने दी, जो गुरुवार को यूनुस से मुलाकात करने उनके पास पहुंचे थे। उन्होंने BBC को बताया, “सुबह से ही उनके इस्तीफे की चर्चा सुन रहे थे, इसलिए उनसे मिलने गया। उन्होंने कहा कि वह इस पर सोच रहे हैं। उनका कहना था कि मौजूदा हालात में काम करना मुमकिन नहीं है।”

मुहम्मद यूनुस ने 2024 के ऐतिहासिक छात्र-नेतृत्व वाले जनविद्रोह के बाद सत्ता संभाली थी, जिसने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को अपदस्थ कर दिया था। यूनुस को नागरिक संगठनों और सेना दोनों का समर्थन प्राप्त था, और उन्हें मुख्य सलाहकार (Chief Advisor) की भूमिका में अंतरिम सरकार की कमान सौंपी गई थी।

हालांकि, सत्ता में आने के बाद से ही यूनुस को राजनीतिक दलों की असहमति और सहयोग की कमी से लगातार जूझना पड़ रहा है। कई राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अंतरिम सरकार के पास न तो स्पष्ट जनादेश है और न ही स्थायी समर्थन।

नाहिद इस्लाम ने यूनुस से आग्रह किया कि वे इस्तीफा न दें। “मैंने उनसे कहा कि वे मजबूत बने रहें, क्योंकि यह देश की स्थिरता और उस जनआंदोलन की उम्मीदों का सवाल है जिसने उन्हें इस पद तक पहुंचाया,” उन्होंने कहा। इस्लाम का मानना है कि यदि राजनीतिक दल आपसी मतभेदों को पीछे छोड़कर एकजुट हों, तो सरकार को स्थायित्व मिल सकता है।लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि “अगर राजनीतिक वर्ग का भरोसा और सहयोग नहीं मिलेगा, तो ऐसे में यूनुस क्यों टिके रहें?” यह सवाल अब बांग्लादेशी राजनीति के केंद्र में आ गया है।

इस राजनीतिक संकट के बीच सेना की भूमिका पर भी बहस तेज हो गई है। 2024 के विद्रोह के दौरान सेना ने विरोध-प्रदर्शनों को कुचलने से इनकार कर दिया था और पूर्व पीएम शेख हसीना को भारत सुरक्षित पहुंचाने में मदद की थी। इसके बाद ही यूनुस को SAD (Students Against Discrimination) जैसे छात्र संगठन के समर्थन से सत्ता में लाया गया।

अब, वही सेना सत्ता के समीकरण में एक निर्णायक शक्ति बन चुकी है, जिससे नागरिक नेताओं और सैन्य प्रतिष्ठान के बीच असहमति बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं।

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