भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान तुर्की द्वारा पाकिस्तान को सैन्य ड्रोन और जवानों के रूप में दी गई गुप्त सहायता अब तुर्की के लिए भारी पड़ने लगी है। भारत में जगह-जगह तुर्की के खिलाफ नाराज़गी बढ़ रही है, और इसकी पहली बड़ी अकादमिक प्रतिक्रिया सामने आई है — देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान आईआईटी बॉम्बे ने तुर्की की सभी यूनिवर्सिटियों के साथ अपने शैक्षणिक करार तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए हैं।
आईआईटी बॉम्बे के अधिकारियों ने बताया कि यह निर्णय “देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता” देने के तहत लिया गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि “जब तक कोई नई निर्देशिका जारी नहीं होती, तुर्की के साथ कोई शैक्षणिक सहयोग नहीं होगा।”
यह कदम उस बड़ी श्रृंखला का हिस्सा है जिसमें भारत ने तुर्की के खिलाफ आर्थिक, कूटनीतिक और शैक्षणिक मोर्चों पर प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया है। इससे पहले, नौ भारतीय एयरपोर्टों पर काम कर रही तुर्की की सेलेबी कंपनी की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी गई थी। व्यापारी संगठनों ने तुर्की के सामानों — खासकर फलों और अन्य उत्पादों — पर बहिष्कार की घोषणा की थी।
देश की अन्य शिक्षण संस्थाएं भी अब तुर्की से दूरी बना रही हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने इनोनू यूनिवर्सिटी, तुर्की के साथ हुआ शैक्षणिक समझौता स्थगित किया है। जामिया मिलिया इस्लामिया ने भी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए तुर्की की संस्थाओं के साथ सभी प्रकार के सहयोग रोकने का ऐलान किया है। वहीं, आईआईटी रुड़की ने भी इनोनू विश्वविद्यालय के साथ अपना समझौता औपचारिक रूप से खत्म कर दिया है।
आईआईटी बॉम्बे के इस निर्णय का स्वागत करते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “तुर्की जैसा देश आतंकवाद का समर्थन कर रहा है, यह मानवता के खिलाफ है। ऐसे अपराधी देशों से नाता तोड़ना भारत की नैतिक जिम्मेदारी है। देशवासियों ने तुर्की पर अघोषित बहिष्कार का संदेश दिया है और अब तुर्की को भी भारतीयों की ताकत का अंदाज़ा हो गया होगा।”
इस घटनाक्रम से साफ है कि अब भारत न सिर्फ सीमाओं पर, बल्कि शिक्षा, व्यापार और कूटनीति के हर स्तर पर उन देशों के खिलाफ निर्णायक कदम उठा रहा है जो उसकी सुरक्षा के विरुद्ध खड़े हैं। आईआईटी बॉम्बे का यह कदम आने वाले समय में अन्य संस्थाओं के लिए भी मिसाल बन सकता है।
