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Tuesday, June 24, 2025
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गिलास से नहीं, लोटे से पिएं पानी, पेट और आंतें रहेंगी बिल्कुल साफ

लोटे में रखा पानी न केवल प्यास बुझाता है बल्कि आंतों की भी गहराई से सफाई करता है।

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आयुर्वेद और पारंपरिक भारतीय जीवनशैली में हमेशा से यह कहा जाता रहा है कि पानी केवल जीवनदायिनी तरल नहीं, बल्कि उसका सेवन कैसे और किस बर्तन से किया जाए, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आधुनिक जीवनशैली में जहां गिलास और बोतलों का उपयोग आम हो चला है, वहीं विशेषज्ञ और पारंपरिक चिकित्सक लोटे से पानी पीने की सलाह दे रहे हैं।

पुराने समय में लोटा न केवल धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयुक्त होता था, बल्कि रोज़मर्रा की जीवनशैली का भी हिस्सा था। आज इसके पीछे के विज्ञान और आयुर्वेदिक कारणों को फिर से महत्व दिया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि लोटे का गोल आकार पानी की संरचना और ऊर्जा पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसका असर हमारे पाचन तंत्र, आंतों की सफाई और शरीर की ऊर्जा प्रणाली पर सीधा पड़ता है।

पानी का स्वभाव स्वयं में तटस्थ होता है, लेकिन वह जिस बर्तन में रखा जाता है, उसी के गुणों को ग्रहण करता है। जैसे तांबा, चांदी, कांसा या पीतल के बर्तनों में रखा पानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। वहीं स्टील, प्लास्टिक या लोहे के बर्तनों में पानी रखने से उसके गुण घट सकते हैं।

गिलास का आकार सीधा और सिलेंडरनुमा होता है, जिससे पानी में उच्च सरफेस टेंशन बनी रहती है। जबकि लोटे का गोल आकार पानी की सतह पर दबाव को कम करता है, जिससे वह शरीर के लिए और भी सहज और लाभकारी बन जाता है। वैज्ञानिक रूप से, कम सरफेस टेंशन वाला पानी शरीर में आंतों की सफाई में अधिक मदद करता है और पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है।

यह कोई संयोग नहीं कि पुराने समय में कुएं गोल आकार में बनाए जाते थे या साधु-संतों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले कमंडल भी लोटे के आकार के होते थे। इसका कारण यह है कि गोल आकार से पानी में संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। यही सिद्धांत वर्षा की बूंदों पर भी लागू होता है, जो स्वाभाविक रूप से गोल होती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, लोटे में रखा पानी न केवल प्यास बुझाता है बल्कि आंतों की भी गहराई से सफाई करता है। यह विशेष रूप से बवासीर, भगंदर और आंतों में सूजन जैसी समस्याओं से बचाव में सहायक हो सकता है। आयुर्वेद के अनुसार, पेट की साफ-सफाई और संतुलित पाचन संपूर्ण स्वास्थ्य का आधार है।

कहा जाता है कि गिलास का प्रचलन भारत में पुर्तगालियों के माध्यम से आया। इससे पहले पारंपरिक भारतीय समाज में पानी पीने के लिए लोटे का ही उपयोग होता था। अब विशेषज्ञ इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि गिलास छोड़ें और लोटे से पानी पीना शुरू करें, जिससे शरीर अधिक प्राकृतिक, संतुलित और स्वस्थ बना रह सके।

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