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Friday, June 20, 2025
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प्रख्यात खगोलशास्त्री जयंत नारळीकर नहीं रहे, 87 वर्ष की उम्र में पुणे में निधन!

टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR) से जुड़े रहे, जहां उनके नेतृत्व में थिअरेटिकल एस्ट्रोफिजिक्स ग्रुप ने अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त की।

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भारत के खगोलशास्त्र और विज्ञान प्रसार के क्षेत्र में एक अत्यंत प्रतिष्ठित नाम, पद्मविभूषण डॉ. जयंत विष्णु नारळीकर का मंगलवार को पुणे में निधन हो गया। वे 87 वर्ष के थे। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, उन्होंने नींद में ही अंतिम सांस ली। हाल ही में उनकी कूल्हे की सर्जरी हुई थी।

डॉ. नारळीकर देश-विदेश में अपने वैज्ञानिक अनुसंधान, सरल भाषा में विज्ञान को जनसामान्य तक पहुंचाने की कला और मराठी विज्ञान कथा साहित्य में योगदान के लिए व्यापक रूप से सम्मानित थे। उनकी लेखनी में विज्ञान और कल्पना का ऐसा सुंदर समावेश था, जो पाठकों को विज्ञान से जोड़ने का प्रभावी माध्यम बना।

19 जुलाई 1938 को जन्मे डॉ. नारळीकर ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) परिसर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, जहां उनके पिता विष्णु वासुदेव नारळीकर गणित विभाग के प्रमुख थे। उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां वे Wrangler और Tyson Medalist रहे।

1972 से 1989 तक वे टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR) से जुड़े रहे, जहां उनके नेतृत्व में थिअरेटिकल एस्ट्रोफिजिक्स ग्रुप ने अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त की।

1988 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने उन्हें इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) की स्थापना का कार्य सौंपा। वे इसके संस्थापक निदेशक बने और 2003 तक इस पद पर रहे। उनके नेतृत्व में IUCAA खगोलशास्त्र और ब्रह्मांड विज्ञान में वैश्विक स्तर का उत्कृष्ट अनुसंधान केंद्र बन गया। वे सेवानिवृत्ति के बाद एमेरिटस प्रोफेसर रहे।

डॉ. नारळीकर केवल वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि विज्ञान को लोकप्रिय बनाने वाले श्रेष्ठ लेखक, वक्ता और प्रसारक भी थे। उन्होंने विज्ञान पर कई पुस्तकें, लेख, टीवी और रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से जनमानस में वैज्ञानिक चेतना का प्रसार किया। विशेष रूप से मराठी में उनकी विज्ञान कथाएं और लेखन बेहद लोकप्रिय रहे।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान:
  • 1965: केवल 26 वर्ष की उम्र में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

  • 1996: यूनेस्को ने उन्हें कलिंगा पुरस्कार से नवाजा।

  • 2004: उन्हें पद्मविभूषण प्रदान किया गया।

  • 2011: महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार दिया।

  • 2014: उनकी आत्मकथा को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।

डॉ. नारळीकर अपने पीछे तीन बेटियों को छोड़ गए हैं। उनका जाना भारतीय विज्ञान-जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। वे एक ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने अंतरिक्ष और ब्रह्मांड के जटिल रहस्यों को आमजन की भाषा में समझाया, और विज्ञान को केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित न रखकर समाज का हिस्सा बनाया। भारतीय वैज्ञानिक समुदाय, शिक्षा जगत और साहित्य प्रेमियों के लिए डॉ. नारळीकर की विरासत हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

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