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योग साधना के पुरोधा बाबा शिवानंद का निधन, 128 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस

इसके बाद उन्होंने जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन किया और स्वयं को योग, तपस्या और समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया।

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त्याग, तप और संयम के प्रतीक पद्मश्री सम्मानित बाबा शिवानंद का शनिवार रात निधन हो गया। 128 वर्ष की आयु में उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) अस्पताल में रात करीब 9 बजे अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार रविवार (4 मई) को हरिश्चंद्र घाट पर किया जाएगा। बाबा शिवानंद की विलक्षण साधना और योगमय जीवन ने उन्हें भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में एक प्रेरणास्रोत बना दिया था।

बाबा शिवानंद वाराणसी के भेलूपुर क्षेत्र स्थित दुर्गाकुंड के कबीर नगर में रहते थे। बेहद वृद्ध होने के बावजूद वह प्रतिदिन नियमित रूप से योग और प्राणायाम करते थे। उनका जीवन संयम, सादगी, सेवा और ब्रह्मचर्य का आदर्श उदाहरण रहा। वर्ष 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। राष्ट्रपति भवन में इस अवसर पर बाबा शिवानंद नंगे पांव पहुंचे थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घुटनों के बल बैठकर धन्यवाद ज्ञापित किया था। प्रधानमंत्री मोदी उनके सम्मान में स्वयं खड़े हो गए थे और राष्ट्रपति कोविंद ने भी उन्हें झुककर सम्मानित किया था।

बाबा शिवानंद का जन्म 8 अगस्त 1896 को ब्रिटिश भारत के श्रीहट्टी (अब बांग्लादेश) में हुआ था। उनका परिवार अत्यंत निर्धन था और वह एक ब्राह्मण भिक्षुक परिवार से ताल्लुक रखते थे। केवल चार वर्ष की उम्र में उनके माता-पिता ने उन्हें नवद्वीप निवासी बाबा ओंकारानंद गोस्वामी को सौंप दिया था। छह वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने माता-पिता और बहन को भुखमरी के कारण खो दिया। इसके बाद उन्होंने जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन किया और स्वयं को योग, तपस्या और समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया।

बाबा शिवानंद सिर्फ योग के ही नहीं, लोकतंत्र के भी कट्टर आस्थावान रहे। उन्होंने कभी भी मतदान करना नहीं छोड़ा और हर चुनाव में वाराणसी जाकर अपना वोट डाला। उनके लिए लोकतांत्रिक अधिकार भी जीवन की अनिवार्य जिम्मेदारी थी।

उनके निधन से योग परंपरा और भारतीय साधना पथ को एक गहरा आघात पहुंचा है। बाबा शिवानंद न केवल एक साधक थे, बल्कि एक चलती-फिरती परंपरा, एक जीवित ग्रंथ, और भारतीय मूल्यों के जीते-जागते प्रतीक थे। आने वाली पीढ़ियों के लिए उनका जीवन एक अमिट प्रेरणा बना रहेगा। उनकी अंतिम यात्रा रविवार को ही निकाली जाएगी, जिसमें काशीवासी और देशभर से आए श्रद्धालु उन्हें अंतिम विदाई देंगे।

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