प्रसिद्ध लेखक, इस्लाम के चिकित्सक और टिपण्णीकार सलमान रुश्दी की आंख में चाकू मारने वाले हादी मतार की सजा न्यूयॉर्क की अदालत ने शुक्रवार (16 मई) को मुक़र्रर की। हदी मतार को 25 साल की सजा सुनाई गई है। यह फैसला सिर्फ एक अपराध के लिए नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हुए हमले के खिलाफ एक कड़े संदेश के रूप में लिया जा रहा है।
मेविल अदालत में जज डेविड फोले ने मतार को हत्या के प्रयास का दोषी मानते हुए यह सजा सुनाई। 27 वर्षीय मतार को इसके अतिरिक्त सात साल की और सजा दी गई है, जो मुख्य सजा के साथ चलेगी। यह वही हादी मतार है जिसने अगस्त 2022 में चौटाउक्वा इंस्टीट्यूशन के मंच पर अचानक चाकू से हमला कर रुश्दी की दाईं आंख को हमेशा के लिए अंधकार में धकेल दिया था।
इस हमले में लेखक हेनरी रीज़ भी घायल हुए थे, जो सताए गए लेखकों को सुरक्षित आश्रय देने के एक वैश्विक अभियान के संस्थापक हैं। यह मंच दरअसल स्वतंत्र लेखन और विचार की स्वतंत्रता के लिए समर्पित था, जिसे मतार ने लहूलुहान कर दिया।
जैसे-जैसे अदालत में सजा की घड़ी नजदीक आई, मतार ने अपनी कट्टर सोच का खुलासा करते हुए कहा कि, “रुश्दी एक बदमाश बनना चाहता है, वह दूसरों को धमकाना चाहता है।” वहीं जिला अभियोजक जेसन श्मिट ने फैसले पर संतोष जताते हुए कहा, “उनकी मूल्य प्रणाली यह है कि वे न्याय और सजा को अपने हिसाब से तय करना चाहते हैं।”
दरअसल, यह हमला सिर्फ 2022 का ही नहीं था—यह उस लकीर का हिस्सा था, जो 1989 में ईरान के अयातुल्ला खुमैनी के फतवे से खिंचनी शुरू हुई थी। उनके उपन्यास “The Satanic Verses” को ईशनिंदा करार देते हुए रुश्दी की जान लेने का फतवा जारी हुआ था। तभी से रुश्दी वर्षों तक भूमिगत रहकर ब्रिटिश सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में रहे। अंततः उन्होंने न्यूयॉर्क को अपना घर बना लिया।
इस हमले के बाद रुश्दी ने 2024 में “Knife” नाम से एक मार्मिक संस्मरण प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने हमले की भयावहता और उसके बाद की मानसिक-शारीरिक पीड़ा को शब्दों में ढाला। किताब की लोकप्रियता जितनी रही, उससे भी अधिक इसकी वैचारिक बहस ने सिर उठाया।
अब जबकि संघीय स्तर पर भी हादी मतार पर आतंकवाद के आरोप लगे हैं—जिसे अमेरिकी अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड ने “हिजबुल्लाह के साथ संबद्धता से प्रेरित कृत्य” बताया—मुकदमे की अगली कड़ी जुलाई में खुल सकती है। उसके बाद साल 2026 की शुरुआत में संघीय कोर्ट में ट्रायल की तैयारी की जा रही है।
अदालत के बाहर और अंदर यह मामला धर्म बनाम अभिव्यक्ति, कट्टरता बनाम विचार, और डर बनाम लेखन की आजादी के बीच लंबी बहस की तरह रहा है। इस बार कहानी की कलम किसी लेखक के हाथ में नहीं, न्यायपालिका के पास थी—और उन्होंने अपने फैसले से दुनिया को दिखा दिया कि विचारों पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
