ईरान और इजरायल के बीच चल रहे टकराव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सैन्य हस्तक्षेप से पहले दो हफ्तों की कूटनीतिक पहल की घोषणा की है। CNN की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप प्रशासन इस अवधि में ईरान को परमाणु समृद्धि कार्यक्रम रोकने के लिए मनाने की कोशिश करेगा।
व्हाइट हाउस के अनुसार, ट्रंप को उम्मीद है कि इजरायल के हमलों और मिसाइलों के नुकसान से घिरे ईरान पर दबाव बनेगा और वह यूरेनियम संवर्धन को रोकने के लिए तैयार हो सकता है—हालांकि ईरान इससे पहले इसे ठुकरा चुका है।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलीन लेविट ने कहा,“डिप्लोमेसी अब भी विकल्प है, लेकिन ईरान और दुनिया को यह पता होना चाहिए कि अमेरिका की सेना दुनिया की सबसे ताकतवर और घातक सैन्य शक्ति है।”
ट्रंप प्रशासन ने इस सप्ताह कई ‘सिचुएशन रूम’ बैठकों में ईरान के फोर्डो स्थित भूमिगत परमाणु केंद्र पर बंकर बस्टर बम हमलों की संभावना पर विचार किया। हालांकि, ट्रंप ने दीर्घकालिक युद्ध के जोखिम को लेकर चिंता जताई। उनके कई सलाहकार, यहां तक कि पूर्व रणनीतिकार स्टीव बैनन भी, इस संभावित युद्ध से चिंतित हैं।
अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ और उपराष्ट्रपति जेडी वांस को मध्य पूर्व भेजने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन वार्ता तय न होने के कारण दोनों फिलहाल वॉशिंगटन में ही हैं। इस बीच, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के विदेश मंत्री शुक्रवार(20 जून) को जेनेवा में ईरान के प्रतिनिधियों से मिलेंगे, जहां विटकॉफ के पहले प्रस्ताव को पुनः उठाया जाएगा।
ईरान ने स्पष्ट कर दिया है कि वह तब तक अमेरिका से बात नहीं करेगा जब तक इजरायल उसकी धरती पर बमबारी बंद नहीं करता। CNN की रिपोर्ट में कहा गया है कि ईरानी नेतृत्व को इस बात पर भी आपत्ति है कि अमेरिका ने इजरायल को रोकने के लिए कोई दबाव नहीं बनाया है।
अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने अपने यूरोपीय समकक्षों से बात की है ताकि ईरान को कभी भी परमाणु हथियार विकसित या प्राप्त न करने की गारंटी सुनिश्चित की जा सके। ब्रिटिश विदेश मंत्री डेविड लैमी ने कहा, “ईरान कभी भी परमाणु हथियार विकसित या हासिल नहीं कर सकता, यह हमारी साझा ज़िम्मेदारी है।” व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने जेनेवा वार्ता को टेम्परेचर चेक बताया—यानी ईरान की वार्ता में रुचि का परीक्षण।
13 जून को इजरायल द्वारा ऑपरेशन “राइजिंग लायन” के तहत ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी शुरू की गई, जिसके जवाब में ईरान ने मिसाइल हमले किए। इसके बाद से पश्चिम एशिया में हालात तेजी से बिगड़े हैं। राष्ट्रपति ट्रंप एक ओर अपने चुनावी वादे ‘नो न्यू वॉर’ को निभाना चाहते हैं, दूसरी ओर ईरान को परमाणु ताकत बनने से रोकने का दबाव भी है। आने वाले दो हफ्ते अब इस पूरे संकट की दिशा तय कर सकते हैं—डिप्लोमेसी की जीत या जंग का आगाज़।
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