वर्ल्ड लिवर डे से ठीक एक दिन पहले, विशेषज्ञों ने लिवर की सेहत और हमारे रोज़मर्रा के खानपान के बीच के गहरे रिश्ते पर ज़ोर देते हुए कहा कि सिर्फ खानपान की आदतों में बदलाव लाकर लिवर से जुड़ी बीमारियों के मामलों को 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
डॉक्टरों ने बताया कि पहले जहां शराब को लिवर की खराबी का मुख्य कारण माना जाता था, अब बिना शराब पिए भी लोग ‘नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़’ (NAFLD) के शिकार हो रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजहें हैं—अनुचित खानपान, मोटापा और निष्क्रिय जीवनशैली।
‘फ्रंटियर्स इन न्यूट्रीशन’ जर्नल में छपी एक रिसर्च के मुताबिक, जो लोग अत्यधिक तले-भुने, प्रोसेस्ड और शरीर में सूजन बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, उनमें क्रोनिक लिवर डिज़ीज (CLD) होने की आशंका 16% अधिक रहती है। वहीं, मेडिटेरेनियन डाइट या संतुलित पौष्टिक आहार लेने वाले लोगों में यह खतरा बेहद कम होता है।
लिवर ट्रांसप्लांटेशन सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. संजीव सैगल कहते हैं, “करीब 50 प्रतिशत लिवर की बीमारियों को केवल सही खानपान से रोका जा सकता है। शराब, जंक फूड और सुस्त जीवनशैली से जो नुकसान होता है, उसे बेहतर भोजन से काफी हद तक सुधारा भी जा सकता है।”
उनका कहना है कि लिवर में खुद को रिपेयर करने की शानदार क्षमता होती है, बशर्ते समय रहते जीवनशैली सुधारी जाए। ताजे फल, हरी सब्ज़ियां, साबुत अनाज, पर्याप्त प्रोटीन और भरपूर पानी लिवर की मरम्मत में मदद करते हैं।
डॉ. सैगल के अनुसार, “जब कोई मरीज संतुलित और पोषणयुक्त खाना अपनाता है, तो उसकी ऊर्जा लौटती है, लिवर बेहतर काम करने लगता है और दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुधरता है। इसलिए जरूरी है कि हम पैकेज्ड फूड खरीदते वक्त उसकी जानकारी पढ़ें और प्रोसेस्ड चीज़ों से दूरी बनाएं।”
बच्चों में भी गलत खानपान से लिवर की समस्याएं सामने आ रही हैं। ‘न्यूट्रिएंट्स’ पत्रिका में छपी एक रिसर्च बताती है कि जो मोटे बच्चे अत्यधिक शुगर और प्रोसेस्ड फूड खाते हैं, उनमें MASLD (Metabolic dysfunction-associated steatotic liver disease) नाम की बीमारी देखी जा रही है।
इन बच्चों के शरीर में बड़ी मात्रा में फ्रुक्टोज जमा हो जाता है, जो लिवर में चर्बी, सूजन और इंसुलिन रेसिस्टेंस का कारण बनता है। इससे बचने के लिए बच्चों के आहार में से अतिरिक्त चीनी और प्रोसेस्ड आइटम्स को हटाना अब बेहद जरूरी हो गया है।
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