भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (19 मई)को एक ऐतिहासिक और दूरगामी प्रभाव वाले फैसले में हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए ‘वन रैंक, वन पेंशन’ प्रणाली लागू करने का आदेश दिया है। यह फैसला सर्वोच्च न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनाया, जो हाल ही में देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्त जजों की नियुक्ति की पृष्ठभूमि चाहे जिला न्यायपालिका से रही हो या वे वकील से सीधे हाई कोर्ट के जज बने हों, सभी को समान पेंशन का अधिकार होगा। जस्टिस गवई ने कहा, “जज चाहे वकील से बनाए गए हों या जिला न्यायपालिका से आए हों, उन्हें प्रति वर्ष न्यूनतम 13.65 लाख रुपये की पूरी पेंशन मिलनी चाहिए।”
फैसले के अनुसार, हाई कोर्ट के रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश को सालाना 15 लाख रुपये और अन्य हाई कोर्ट के जजों व एडिशनल जजों को 13.6 लाख रुपये सालाना पेंशन दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि एडिशनल जजों के परिवारों को भी हाई कोर्ट के स्थायी जजों के परिवारों के समान पारिवारिक पेंशन और विधवा लाभ दिए जाएं।
सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि देश के सभी उच्च न्यायालयों में सेवानिवृत्त जजों के लिए यह ‘वन रैंक, वन पेंशन’ सिद्धांत समान रूप से लागू किया जाए। इससे पहले विभिन्न उच्च न्यायालयों के पेंशन मापदंडों में असमानता देखने को मिलती थी, जिसे अब समाप्त किया जाएगा।
इस फैसले को खास बनाने वाली बात यह भी है कि यह मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई द्वारा सीजेआई बनने के बाद सुनाया गया पहला ऐतिहासिक फैसला है। जस्टिस गवई का कानूनी सफर 16 मार्च 1985 को शुरू हुआ था। उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत की और बाद में नागपुर पीठ में महत्वपूर्ण मामलों की पैरवी की। यह फैसला उनके न्यायिक दृष्टिकोण और सामाजिक समानता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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